अमेरिका द्वारा भारत पर उच्च टैरिफ – एक विस्तृत विश्लेषण

अमेरिका के टैरिफ और भारत पर उसका प्रभाव

भारत पर अमेरिका द्वारा लगाए गए आयात शुल्क की दर 50 प्रतिशत तक पहुँच चुकी है, जो विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में सबसे अधिक है। यह दर दर्शाती है कि भारत को अमेरिका के साथ व्यापार में सबसे ज्यादा शुल्क का सामना करना पड़ रहा है। अमेरिका द्वारा यह शुल्क उन देशों पर लगाया जाता है जिनके साथ उसका कोई विशेष व्यापार समझौता नहीं है और जिन्हें ‘मॉस्ट फेवर्ड नेशन’ (MFN) का दर्जा भी प्राप्त नहीं है।

अन्य देशों पर लागू टैरिफ दरें

अमेरिका ब्राज़ील पर औसतन 25 प्रतिशत, तुर्की पर 22 प्रतिशत, थाईलैंड पर 20 प्रतिशत, वियतनाम पर 18 प्रतिशत, दक्षिण अफ्रीका पर 15 प्रतिशत और मलेशिया पर 12 प्रतिशत टैरिफ लागू करता है। इन दरों की तुलना में भारत पर लागू 50 प्रतिशत की दर लगभग दोगुनी है, जिससे भारतीय निर्यातकों को अमेरिका में भारी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है।

भारत पर उच्च टैरिफ का कारण

भारत और अमेरिका के बीच कोई फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) नहीं है। इस कारण अमेरिका, भारत से आयात होने वाले उत्पादों पर सामान्य से अधिक शुल्क लगाता है। वर्ष 2019 में अमेरिका ने भारत को ‘जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रेफरेंसेज़’ (GSP) कार्यक्रम से बाहर कर दिया था, जिससे भारत के कई उत्पादों को मिलने वाली ड्यूटी-फ्री सुविधा समाप्त हो गई। अमेरिका व्यापार घाटे को नियंत्रित करने और घरेलू उद्योगों की रक्षा के लिए भी टैरिफ का उपयोग करता है।

अमेरिका के लिए लाभ

अमेरिका अपने घरेलू उद्योगों को सशक्त बनाने और विदेशी उत्पादों से सुरक्षा प्रदान करने के लिए ऊँचे टैरिफ लगाता है। इससे सरकार को अतिरिक्त राजस्व प्राप्त होता है और स्थानीय कंपनियाँ वैश्विक उत्पादों के मुकाबले प्रतिस्पर्धात्मक बनी रहती हैं।

भारत के लिए नुकसान

भारत के लिए यह स्थिति कई स्तरों पर चुनौतीपूर्ण है। सबसे पहले, निर्यात में गिरावट आती है क्योंकि उच्च शुल्क के कारण भारतीय उत्पाद अमेरिका में महंगे हो जाते हैं। यह विशेष रूप से लघु एवं मध्यम उद्योगों (MSME) को प्रभावित करता है जो भारत के निर्यात का बड़ा हिस्सा बनाते हैं। इसके परिणामस्वरूप, रोजगार के अवसर भी प्रभावित होते हैं और उत्पादन में गिरावट आती है।

वैश्विक व्यापार और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

इस प्रकार के असमान टैरिफ वैश्विक व्यापार में असंतुलन पैदा करते हैं। विश्व व्यापार संगठन (WTO) के सिद्धांतों के अनुसार, टैरिफ नीतियाँ पारदर्शी और संतुलित होनी चाहिए। ऊँचे टैरिफ उपभोक्ताओं के लिए कीमतें बढ़ा देते हैं, जिससे महंगाई में वृद्धि होती है। इसके साथ ही व्यापारिक साझेदारों के बीच तनाव भी उत्पन्न होता है, जो राजनीतिक और कूटनीतिक संबंधों को प्रभावित कर सकता है।

भारतीय अर्थव्यवस्था पर व्यापक प्रभाव

भारतीय अर्थव्यवस्था को इस टैरिफ नीति के चलते कई नकारात्मक प्रभावों का सामना करना पड़ रहा है। रुपये पर दबाव बढ़ता है क्योंकि निर्यात में गिरावट आने से विदेशी मुद्रा का प्रवाह घटता है। टेक्सटाइल, इंजीनियरिंग गुड्स और ऑटो पार्ट्स जैसे क्षेत्र विशेष रूप से प्रभावित होते हैं। अमेरिका भारत का सबसे बड़ा निर्यात बाजार है, ऐसे में विकल्प खोजना भी आसान नहीं होता।

हालाँकि, यह स्थिति कुछ सकारात्मक अवसर भी प्रदान करती है। इससे भारत को अन्य अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों जैसे एशिया, अफ्रीका और यूरोप में अपने उत्पादों को बढ़ावा देने की प्रेरणा मिलती है। साथ ही, यह ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान के तहत घरेलू उत्पादन और नवाचार को प्रोत्साहन देने का एक अवसर बन सकता है।

निष्कर्ष

अमेरिका द्वारा भारत पर लगाया गया 50 प्रतिशत आयात शुल्क केवल एक आर्थिक बाधा नहीं है, बल्कि यह भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों की असमानता को दर्शाता है। यह वैश्विक व्यापार प्रणाली में एकतरफा नीतियों के बढ़ते प्रभाव की ओर इशारा करता है। भारत को चाहिए कि वह रणनीतिक रूप से व्यापारिक समझौतों पर कार्य करे, अपने उत्पादों को अधिक प्रतिस्पर्धी बनाए और विविध वैश्विक बाजारों में अपनी उपस्थिति मजबूत करे।