बीएड के बाद नौकरी नहीं, गोबर से कमाई की राह चुनी — अब हर महीने लाखों की कमाई कर रहीं हैं काजल सैनी

“अगर इरादे मजबूत हों, तो कोई भी काम छोटा नहीं होता।”
25 साल की काजल सैनी ने इस बात को सच करके दिखाया है।

📍 कहानी की शुरुआत – एक सामान्य गाँव से
उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले के एक छोटे से गाँव चांडी की रहने वाली काजल, एक सामान्य किसान परिवार से ताल्लुक रखती हैं। उन्होंने अपने गांव के ही स्कूल से इंटर तक की पढ़ाई की और फिर B.Sc और B.Ed जैसे प्रोफेशनल कोर्स पूरे किए।

जहाँ ज़्यादातर लोग इस पढ़ाई के बाद सरकारी या निजी नौकरी का रुख करते हैं, वहीं काजल ने कुछ अलग सोचते हुए अपने पिता के जैविक खाद के छोटे से काम को आगे बढ़ाने का फैसला लिया।

गोबर से शुरू हुआ करोड़ों का कारोबार

काजल के पिता पिछले दो दशकों से वर्मी कंपोस्ट खाद बना रहे थे। शुरू में यह सिर्फ शौक या पूरक आमदनी का साधन था, लेकिन काजल ने इसे एक प्रोफेशनल बिजनेस में बदल दिया।

वह हर महीने 200 क्विंटल से अधिक जैविक खाद तैयार कर रही हैं, जिसकी मार्केट कीमत ₹700 से ₹800 प्रति क्विंटल तक होती है। यानी वह महीने में लाखों की बिक्री कर रही हैं।

उनके उत्पाद आज सिर्फ उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं हैं, बल्कि हरियाणा, उत्तराखंड और हिमाचल के किसान भी उनकी खाद का उपयोग कर रहे हैं।


🔁 बदलाव कैसे आया?

2014 से पहले घर में बनी हजारों क्विंटल खाद बिना बिके पड़ी रहती थी। लेकिन जैसे ही सरकार ने ऑर्गेनिक फार्मिंग को बढ़ावा देना शुरू किया, चीज़ें बदलने लगीं।

आज हालात ऐसे हैं कि डिमांड इतनी ज़्यादा है कि ग्राहकों को खाद बुक करवानी पड़ती है।


 

200 से अधिक किसानों को दी मुफ्त ट्रेनिंग

काजल सिर्फ खुद तक सीमित नहीं रहीं। उन्होंने अब तक 200+ किसानों को जैविक खाद बनाने की ट्रेनिंग दी है — वो भी बिना कोई शुल्क लिए

उनका मानना है:

“ज्ञान वही है जो दूसरों के काम आए।”

कई महिलाएं और युवा उनकी ट्रेनिंग लेकर खुद का व्यवसाय शुरू कर चुके हैं।


👨‍👩‍👧‍👦 घर और कारोबार दोनों की ज़िम्मेदारी संभाली

काजल की बड़ी बहन की शादी हो चुकी है और छोटा भाई बाहर नौकरी करता है। ऐसे में घर की ज़िम्मेदारी भी अब काजल के कंधों पर है

वह न सिर्फ एक सफल बिजनेसवुमन हैं, बल्कि अपने परिवार की मजबूत आधारशिला भी हैं।

काजल की यात्रा इस बात की मिसाल है कि नौकरी ही सफलता का एकमात्र रास्ता नहीं है। अगर आपके पास आइडिया है, मेहनत है और करने की लगन है, तो स्वरोजगार भी सम्मान और पहचान दिला सकता है।


संक्षेप में: काजल सैनी की सफलता की कुंजी

बिंदुविवरण
📍 गाँवचांडी, सहारनपुर
📚 शिक्षाB.Sc + B.Ed
🧑‍🌾 व्यवसायवर्मी कंपोस्ट (गोबर से जैविक खाद)
📦 प्रोडक्शन200 क्विंटल/माह
🌐 डिलीवरीयूपी, हरियाणा, उत्तराखंड, हिमाचल
👩‍🏫 ट्रेनिंग दी200+ किसानों को
💡 प्रेरणाआत्मनिर्भरता और नवाचार

 

आप भी कर सकते हैं!

काजल सैनी की तरह आप भी अपने स्थानीय संसाधनों और पारंपरिक ज्ञान को सही दिशा में लेकर सफलता की नई ऊँचाइयाँ छू सकते हैं।

“ज़रूरत सिर्फ एक शुरुआत की होती है – बाक़ी रास्ते खुद बनते जाते हैं!”

ठीक उसी तरह "जहाँ लोग गोबर को बेकार समझते हैं, वहीं भोपाल के जितेंद्र राठौर ने इसे कमाई का ज़रिया बना दिया।"

 

📍 सफलता की शुरुआत: जब नौकरी छूटी, तो आत्मनिर्भर बनने का रास्ता चुना

भोपाल के रहने वाले जितेंद्र राठौर कभी अस्पताल में नौकरी किया करते थे। लेकिन कोरोना लॉकडाउन के दौरान हालात बदले और नौकरी हाथ से चली गई। ज़िंदगी एक नए मोड़ पर खड़ी थी — चुनौतियों से घबराने के बजाय उन्होंने एक बोल्ड फैसला लिया: गाय के गोबर से बिजनेस शुरू करने का।

भोपाल के रहने वाले जितेंद्र राठौर कभी अस्पताल में नौकरी किया करते थे। लेकिन कोरोना लॉकडाउन के दौरान हालात बदले और नौकरी हाथ से चली गई। ज़िंदगी एक नए मोड़ पर खड़ी थी — चुनौतियों से घबराने के बजाय उन्होंने एक बोल्ड फैसला लिया: गाय के गोबर से बिजनेस शुरू करने का।


🧱 गोबर से बनती है कला: दीवार सज्जा से लेकर मूर्तियों तक

जितेंद्र ने गोबर से वो चीजें बनानी शुरू कीं, जिनके बारे में आमतौर पर कोई सोच भी नहीं पाता:

  • वॉल हैंगिंग्स

  • घड़ियां

  • आईने और सीलिंग डेकोर

  • गणेश प्रतिमाएं

  • लोक-कला आधारित मूर्तियाँ

इन उत्पादों को जितेंद्र और उनके परिवार के सदस्य मिलकर हाथ से तैयार करते हैं। इन सभी चीजों में खास बात ये है कि ये 100% इको-फ्रेंडली होती हैं और भारतीय संस्कृति की खुशबू भी लिए होती हैं।

बिजनेस की प्रक्रिया: जानिए कैसे बनते हैं गोबर के प्रोडक्ट्स

“कचरा नहीं, कमाई का ज़रिया है गोबर!”

जितेंद्र का बिजनेस मॉडल बहुत ही सीधा और देसी है। नीचे बताया गया है इसका पूरा स्टेप-बाय-स्टेप प्रोसेस:

  1. शुद्ध गोबर की खरीद
    स्थानीय डेयरी से गाय का गोबर खरीदा जाता है — ध्यान रहे, सिर्फ गाय का।

  2. कंडे तैयार करना
    घर लाकर गोबर से कंडे बनाए जाते हैं और धूप में पूरी तरह सुखाया जाता है।

  3. गोबर को पीसना और पाउडर बनाना
    सूखे कंडों को बारीक पीसकर एक सॉफ्ट पाउडर बनाया जाता है, जो मूर्तियों या अन्य शिल्प कार्यों के लिए बेस सामग्री बनता है।

  4. डिज़ाइन और निर्माण
    पाउडर में कुछ प्राकृतिक बाइंडर मिलाकर तरह-तरह की कलात्मक वस्तुएं तैयार की जाती हैं।

  5. बिक्री और मार्केटिंग
    ये उत्पाद सालभर विभिन्न राज्य स्तरीय मेलों, एग्जीबिशन और धार्मिक आयोजनों में बेचे जाते हैं। सोशल मीडिया और वर्ड-ऑफ-माउथ से भी इनकी डिमांड बढ़ती जा रही है।


 

पूरा परिवार बना सहारा

जितेंद्र अकेले नहीं, उनका बेटा, पत्नी और मां भी इस काम में उनका साथ देते हैं।

“ये सिर्फ एक बिजनेस नहीं, बल्कि हमारा पारिवारिक सपना है।”


💰 कमाई कितनी होती है?

जितेंद्र के अनुसार, अगर सीजन सही हो और मेला-फेस्टिवल लगते रहें तो वे सालाना लाखों रुपये की बिक्री कर लेते हैं। लोगों को ये प्रोडक्ट्स इतने पसंद आते हैं कि कई बार ऑर्डर एडवांस में बुक करने पड़ते हैं।


🌿 सस्टेनेबिलिटी + संस्कृति = एक सफल फार्मूला

यह बिजनेस न सिर्फ कमाई का ज़रिया बना, बल्कि भारतीय संस्कृति को जीवित रखने और पर्यावरण को नुकसान से बचाने का माध्यम भी बना।

आप भी शुरू कर सकते हैं!

अगर आपके पास:

  • गाय का गोबर उपलब्ध है

  • थोड़ा सा क्रिएटिव माइंड है

  • और अपने काम को लेकर जुनून है

तो आप भी जितेंद्र की तरह एक कम लागत में शुरू होने वाला हाई प्रॉफिट बिजनेस खड़ा कर सकते हैं।


संक्षेप में: क्यों ये बिजनेस आज के युवाओं के लिए परफेक्ट है?

कारणलाभ
✔️ कम लागतशुरुआत सिर्फ ₹2,000–₹5,000 में
✔️ पर्यावरण अनुकूलपूरी तरह इको-फ्रेंडली
✔️ सरकारी मेलों में मौकाहर राज्य में हैंडिक्राफ्ट मेलों में स्टॉल
✔️ स्किल बेस्डएक बार सीखने के बाद जीवनभर काम
✔️ मांग बढ़ रही हैलोग अब नेचुरल और हैंडमेड चीज़ें पसंद करते हैं

🔚 अंत में बस इतना ही कहेंगे…

“अगर आप भी गोबर को ‘बेकार चीज़’ समझते हैं, तो फिर से सोचिए — क्योंकि जितेंद्र जैसे लोग इसे ‘कमाई का खजाना’ बना चुके हैं।”