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कान्स के रेड कार्पेट पर भारतीय परंपरा की गूंज: ऐश्वर्या राय बच्चन ने 7,216 KM दूर पहुंचाकर रचा इतिहास

कहानी सिर्फ एक ड्रेस की नहीं है, यह एक संस्कृति के आत्मसम्मान की है।
जब ऐश्वर्या राय बच्चन ने 2025 के कान्स फिल्म फेस्टिवल के रेड कार्पेट पर कदम रखा, तो ये सिर्फ एक ग्लैमर का प्रदर्शन नहीं था। यह 7,216 किलोमीटर दूर भारत की आत्मा को पेरिस की धरती पर सजीव कर देने वाला क्षण था। फ्रांस में हो रहे इस इंटरनेशनल इवेंट में जब उन्होंने भारतीय पारंपरिक बनारसी ब्रोकेड के केप के साथ अपना नया अवतार दिखाया, तो पूरा संसार चकित रह गया।
इस ड्रेस में सिर्फ फैशन नहीं, बल्कि भारत की हजारों साल पुरानी आध्यात्मिक गहराई भी गूंथी गई थी। ऐश्वर्या की केप पर लिखा गया श्रीमद्भगवद्गीता का श्लोक न केवल डिजाइन का हिस्सा था, बल्कि एक भाव था – भारत की सांस्कृतिक आत्मा का भाव।
कला, संस्कृति और फैशन का मिलन
कान्स फिल्म फेस्टिवल हमेशा से फैशन, सिनेमा और संस्कृति का संगम रहा है। पर इस बार ऐश्वर्या राय बच्चन ने इसे एक नया आयाम दिया – उन्होंने अपने पहनावे को एक चलता-फिरता ‘आर्ट पीस’ बना दिया, जिसमें भारतीय बुनाई, आध्यात्मिकता और गर्व सबकुछ मौजूद था।
ब्रोकेड की वो केप, जो बनारस के बुनकरों की मेहनत और विरासत को समेटे हुए थी, एक अनोखा संदेश दे रही थी – “हम सिर्फ सुंदर दिखने नहीं आए, हम अपनी संस्कृति को पहनकर आए हैं।”
श्लोक जो सबको सोचने पर मजबूर कर गया
केप पर उकेरा गया श्रीमद्भगवद्गीता का श्लोक – “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन…” – सिर्फ एक धार्मिक उद्धरण नहीं था। यह एक जीवन का दर्शन है, जो भारत के हर कोने में गूंजता है। जब इस श्लोक को दुनिया के सबसे ग्लैमरस रेड कार्पेट पर दुनिया ने पढ़ा, तो वे सिर्फ फैशन नहीं, भारत के दर्शन से भी रूबरू हुए।
यह पहली बार था जब भारतीय आत्मा ने फैशन के जरिए वैश्विक मंच पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई — नारे नहीं, दर्शन के माध्यम से।
गौरव गुप्ता की कारीगरी और ऐश्वर्या की गरिमा
इस अद्भुत परिधान के पीछे थे डिज़ाइनर गौरव गुप्ता, जिनकी सोच और कारीगरी ने भारतीय शिल्प को एक वैश्विक पहचान दिलाई। उन्होंने ‘Heiress of Clam’ यानी ‘शांति की वारिस’ नामक थीम पर ऐश्वर्या के लिए कस्टम कॉउचर डिजाइन किया, जिसमें न केवल भव्यता थी बल्कि गहराई भी।
ब्रोकेड की ये कढ़ाई, जो सोने-चांदी के धागों से बनी थी, सिर्फ शिल्प नहीं थी — यह वारिस थी उस गौरवशाली परंपरा की जो आज भी बनारस की गलियों में गूंजती है।
आराध्या के साथ एक पीढ़ी का प्रतिनिधित्व
इस बार ऐश्वर्या अकेले नहीं थीं। उनके साथ थीं उनकी बेटी आराध्या बच्चन। एक पीढ़ी, जो न सिर्फ अपनी मां की परंपरा को देख रही है, बल्कि उसे अपनाती भी है। आराध्या की मौजूदगी इस बात का प्रतीक थी कि भारतीय संस्कृति केवल इतिहास नहीं, भविष्य भी है।
कान्स में भारतीयता की जयजयकार
ऐश्वर्या का यह कदम भारतीय फैशन और संस्कृति के लिए एक ऐतिहासिक क्षण है। अब तक कान्स को वेस्टर्न फैशन का केंद्र माना जाता था, लेकिन इस बार भारतीयता का परचम लहराया।
जहाँ बाकी सेलेब्रिटी फैशन के नाम पर वेस्टर्न थीम्स चुन रहे थे, वहीं ऐश्वर्या ने भारतीयता को स्टाइल में नहीं, आत्मा में ढालकर दुनिया के सामने रखा।
सिंदूर और साड़ी: आधुनिकता में पारंपरिकता की झलक
ऐश्वर्या के पहले लुक में उन्होंने आइवरी रंग की साड़ी पहनी थी। बालों में सिंदूर, हाथों में चूड़ियां और ट्रेडिशनल ज्वेलरी – यह एक सजीव उदाहरण था कि आधुनिक मंचों पर भी भारतीय नारी कैसे अपनी पहचान के साथ खड़ी हो सकती है।
भारत की सॉफ्ट पावर की जीत
ऐश्वर्या का यह कदम एक प्रकार से भारत की सॉफ्ट पावर का प्रतीक बन गया है। न तो कोई भाषण, न कोई प्रचार – सिर्फ एक ड्रेस ने दुनिया को भारतीयता की ताकत का अहसास कराया। यही तो है भारत की असली शक्ति – अपनी संस्कृति को गरिमा के साथ प्रस्तुत करना।
डिजाइन से संदेश: फैशन के माध्यम से संवाद
ऐश्वर्या की ड्रेस सिर्फ लुक नहीं, एक डायलॉग थी। यह संवाद था:
बनारसी ब्रोकेड के जरिए भारतीय शिल्प से।
गीता के श्लोक के जरिए भारतीय दर्शन से।
सिंदूर के जरिए भारतीय स्त्री की गरिमा से।
बेटी के साथ चलने के जरिए परंपरा और भविष्य के संगम से।
ऐश्वर्या राय: केवल अदाकारा नहीं, सांस्कृतिक राजदूत
ऐश्वर्या हमेशा से कान्स में भारत की प्रतिनिधि रही हैं, लेकिन इस बार उन्होंने अपने कंधों पर एक जिम्मेदारी को निभाया – भारतीय आत्मा को वैश्विक पटल पर प्रस्तुत करने की। इस लुक ने साबित कर दिया कि फैशन अगर सोच के साथ मिले, तो वो सिर्फ सुंदरता नहीं, संस्कृति का वाहन बन सकता है।
निष्कर्ष: फैशन से परे एक संदेश
2025 का कान्स रेड कार्पेट फैशन के इतिहास में याद रखा जाएगा, लेकिन भारत के लिए यह क्षण एक संस्कृति की विजय के रूप में दर्ज होगा।
ऐश्वर्या राय बच्चन की ड्रेस, उनकी उपस्थिति और उनका आत्मविश्वास इस बात का प्रमाण है कि जब हम अपनी जड़ों से जुड़े रहते हैं, तब हम जहां भी जाएं – दुनिया झुकती नहीं, रुक जाती है।